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संसार में, और संसार से परे || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-29 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१९अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />असंसारस्य तु क्वापि न हर्षो न विषादिता।<br />स शीतलहमना नित्यं विदेह इव राजये॥१८- २२॥<br /><br />संसारमुक्त पुरुष को ना कहीं कोई हर्ष होता है, न विषाद, उसका मन सदा शीतल होता है, और वह विदेह के समान शोभायमान होता है।<br /><br />प्रसंग:<br />संसारमुक्त पुरुष कहने से क्या आशय है?<br />असंसारी पुरुष कैसा होता है?<br />क्या असंसारी पुरुष को सुख या दुःख का आभास नहीं होता है?<br />संसार में रहकर भी संसार के पार कैसे जाया जा सकता है?<br />संसारी और असंसारी में क्या भेद है?

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